Monday, January 19, 2009

जगजीत सिंह की एक ग़ज़ल

बेबसी जुर्म है, हौसला जुर्म है
जिंदगी तेरी एक एक अदा, जुर्म है...
बेबसी जुर्म है, हौसला जुर्म है।

ऐ सनम तेरे बारे मैं कुछ सोच कर -२
अपने बारे मैं कुछ, सोचना जुर्म है।

याद रखना तुझे, मेरा एक जुर्म था -२
भूल जन तुझे, दूसरा जुर्म है

क्या सितम है की तेरे हँसी शहर में -२
हर तरफ़ गौर से, देखना जुर्म है।

मेरी तरफ़ से
हर घड़ी, बस तुझे चाहना जुर्म था -२
हर घड़ी बस तुझे, चाहना जुर्म है।

तेरा चेहरा मेरी आंखों में है बसा -2
अब किसी और को देखना, जुर्म है।

प्यार की जो कहानी शुरू हमें की -२
अब उसे कब्र में, दफनाना जुर्म है।

जिसका भगवान ही उससे रूठा हो जब -२
बेवजह अब मेरा, मुस्कुरना जुर्म है।


अभिषेक पालीवाल की तरफ़ से
जिंदगी के हर के मोड़ पे ठहर कर-२
बीती यादों को यूँ सोचना जुर्म है

अपनी यादों की दुनिया में यूँ डूब कर-२
आती खुशियों से मुहँ मोड़ना जुर्म है।

अजय की तरफ़ से
मुझे देख कर मुस्कुराना वो तेरा, पलकें झुकाना वो तेरा -२
याद करके उसे मेरा आंसू बहाना जुर्म है।

चांदनी रात में साथ वो तेरा, हाथों में हाथ वो तेरा -
बिन तेरे उस चाँद का निकल आना जुर्म है,

बिन तेरे ऐ दिलबर ...सांसो का आना जाना जुर्म है...
सांसो का आना जाना जुर्म है..........सांसो का आना जाना जुर्म है.............

1 comment:

Kidoredo said...

offo ghazal ko remake kar raha hain :) didnt get the complete essence of it for that wud require u to be wid me :) Aur where is Raghu ki taraf se? that shud have come first .. how mean!!!